icse hindi ekanki sanchay question and answers

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EKANKI SANCHAY
एकांकी संचय
विष्णु प्रभाकर
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(जन्म: 1912 - मृत्यु: 2009)

विष्णु प्रभाकर हिन्दी के सुप्रसिद् लेखक के रूप में विख्यात हुए। उनका जन्म उत्तरप्रदेश केमुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था। उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपये मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी. की डिग्री प्राप्त की। विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।
 
विष्णु प्रभाकर ने पहला नाटक लिखा- हत्या के बाद  और लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया। आजादी के बाद वे नई दिल्ली  गये और सितम्बर १९५५ में आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक के तौर पर नियुक्त हो गये जहाँ उन्होंने १९५७ तक काम किया।  
'अद्र्धनारीश्वरपर उन्हें बेशक साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी प्राप्त हुआ, लेकिन 'आवारा मसीहाने साहित्य में उनकी एक अलग ही पहचान बना दी।
प्रभाकर जी के साहित्य में मानवतावादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है।

प्रमुख रचनाएँ
सत्ता के आर-पार, हत्या के बाद, नवप्रभात, डॉक्टर, प्रकाश और परछाइयाँ, बारह एकांकी, अब और नही, टूट्ते परिवेश, गान्धार की भिक्षुणी, और अशोक आदि।


संस्कार और भावना

विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित "संस्कार और भावना" एकांकी में परम्परागत संस्कार और मानवीय भावनाओं के बीच के द्वंद् को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। एकांकीकार ने प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से मानव मन का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। एक भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार की माँ अपने पुराने संस्कारों से बद् है। यह परिवार परम्पराओं से चली  रही रूढ़िवादी संस्कारों को ढो रही है और उसकी रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझ रही है। इसी कारण माँ अपने बड़े बेटे अविनाश के अंतर्जातीय विवाह को स्वीकार नहीं करती है। अविनाश ने एक बंगाली लड़की से प्रेम-विवाह किया और अपनी पत्नी के साथ घर से अलग रहने लगा है। माँ अपने छोटे बेटे अतुल और उसकी पत्नी उमा के साथ रहती है पर बड़े बेटे से अलग रहना उसके मन को कष्ट पहुँचाता है।
जब माँ को अविनाश की बीमारी, उसकी पत्नी द्वारा की गई सेवा और उसकी जानलेवा बीमारी की सूचना मिलती है तब  पुत्र-प्रेम की मानवीय भावना का प्रबल प्रवाह  रूढ़िग्रस्त प्राचीन संस्कारों के जर्जर होते बाँध को तोड़ देता है। माँ अपने बेटे और बहू को अपनाने का निश्चय करती है।

कठिन शब्दार्थ

संक्रान्ति काल - एक अवस्था से निकलकर दूसरी अवस्था में पहुँचने का का।
मिसरानी - ब्राह्मण स्त्री जो आजीविका के लिए दूसरों के लिए खाना पकाती है।
रक्तिम आभा - लाल चमक
बहुतेरा - बहुत अधिक
हैजा - एक रोग का नाम
विद्रूप - व्यंग्य
कपोलों पर - गालों पर
साक्षी - गवाह
पचड़े - बेकार की बातें
मोहिनी सी छाह जाती है - जैसे मन को मोह लेना
डाकिन - चुड़ैल
सौम्यताशीतलता
विजातीय - दूसरी जाति की
फौलाद - असली लोहा, मज़बूत शरीर वाला 

अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर

(1)
बड़ी-बड़ी काली आँखें, उनमें शैशव की भोली मुसकराहट, अनजान में ही लज्जा हुए कपोलों पर रहने वाली हँसी...

प्रश्न

(i) इन शब्दों में किससे द्वारा, किसके रूप की प्रशंसा, किन शब्दों में की गई है ? उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।

(ii) इन शब्दों को सुनकर माँ क्यों चौंक पड़ी ? उनके मन में कौन सा प्रश्न उठा ?

(iii) क्या उमा ने अविनाश की बहू को देखा था ? यदि हाँ, तो वह उसके घर कब गई थी और क्यों ?

(iv) माँ ने अविनाश की बहू को क्यों नहीं अपनाया ? समझाकर लिखिए।
 

उत्तर


(i) इन शब्दों में उमा के द्वारा अविनाश की पत्नी की प्रशंसा की गई है। उमा अपनी सास से कहती है कि अविनाश की पत्नी बहुत भोली और प्यारी है, जो उसे एक बार देख ले तो उसका मन बार-बार उसे देखने के लिए मचल उठेगा। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी और काली हैं जिनमें अबोध बच्चे का भोलापन छिपा है। उसके गाल पर सदैव लज्जा की लालिमा का आवरण रहता है।

(ii) उमा ने जब अविनाश की पत्नी की विशेषताओं का उल्लेख किया तो माँ (उमा की सास) चौंक पड़ी क्योंकि उसे इस बात का आभास नहीं था कि उमा अविनाश की पत्नी से मिली है क्योंकि अविनाश अपनी पत्नी के साथ अलग रहता था। माँ के प्रश्न में यह प्रश्न उठा कि उमा कब अविनाश की पत्नी से मिली। उन्होंने उमा से प्रश्न किया - "तूने क्या अविनाश की बहू को देखा है ?"

(iii) हाँ, उमा ने अविनाश की पत्नी को देखा था। एक दिन जब माँ अविनाश की पत्नी से बहुत गुस्सा होकर दुखी हो रही थी तब उमा माँ को
बिना बताए अविनाश की पत्नी से मिलने उसके घर चली गई थी। दरअसल उमा लड़ने गई थी क्योंकि उनकी वजह से अविनाश ने अपनी माँ से अलग होने का फैसला लिया था जिसके कारण माँ को बहुत दुख हुआ था और वह अपने बड़े बेटे से मिलने के लिए तड़पती रहती हैं।
 
(iv) माँ एक हिन्दू वृद्धा है जो जाति-पाँति, ऊँच-नीच और छुआछूत में विश्वास रखती हैं। वे हिन्दू समाज की रूढ़िवादी संस्कारों से ग्रस्त हैं। वे संस्कारों की दास हैं। उसके दो पुत्र हैं -बड़ा अविनाश और छोटा अतुल। अविनाश ने माँ की इच्छा के विरुद् जाकर एक बंगाली लड़की से प्रेम-विवाह कर लिया परन्तु माँ ने इस विवाह को अपनी स्वीकृति प्रदान नहीं की और विजातीय बहू को अपनाया भी नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि अविनाश अपनी पत्नी के साथ अलग रहने लगा। माँ इस बात से अत्यंत आहत थी।

(2)

अभी चलो माँ, पर चलने से पहले एक बात सोच लो। यदि तुम उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं ला सकीं तो जाने से कुछ लाभ नहीं होगा।

प्रश्न

(i) "अभी चलो माँ" - इस वाक्यांश को किसने, किससे और किस अवसर पर कहा ?

(ii) अतुल का चरित्र-चित्रण कीजिए।

(iii) अतुल और उमा माँ के किस निर्णय से प्रसन्न हैं ? उनकी माँ के विचारों में परिवर्तन का क्या कारण था ? समझाकर लिखिए।

(iv) अंतर्जातीय विवाह का देश की एकता और अखंडता में क्या महत्त्व है ? संक्षेप में अपने विचार लिखिए।

उत्तर

(i) उपर्युक्त वाक्यांश अतुल ने अपनी माँ को उस अवसर पर कहा जब माँ को मिसरानी से पता चला कि अविनाश तो हैजा से बच गया लेकिन अब वहीं बीमारी अविनाश की पत्नी को हो गया है और वह मरणासन्न है तब माँ अतुल से कहती है वह उसे अविनाश के पास ले चले।

(ii) अतुल एकांकी का प्रमुख पुरुष पात्र है। वह माँ का छोटा बेटाअविनाश का अनुज और उमा का पति है। वह प्राचीन संस्कारों को मानते हुए आधुनिकता में यकीन रखने वाला एक प्रगतिशील नवयुवक है। वह माँ का आज्ञाकारी पुत्र होते हुए भी माँ की गलत बातों का विरोध भी करता है। जब माँ अविनाश की पत्नी बीमार पड़ जाती है तब माँ अपने बड़े लड़के के घर जाना चाहती है। उस वक्त अतुल स्पष्ट शब्दों में माँ से कहता है - "यदि तुम उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं ला सकीं तो जाने से कुछ लाभ नहीं होगा।" अतुल संयुक्त परिवार में विश्वास रखता है। उसमें भ्रातृत्व की भावना है। वह अपने बड़े भाई का सम्मान करता है।

(iii) जब माँ को अविनाश की पत्नी की बीमारी की सूचना मिलती है तब उसका हृदय मातृत्व की भावना से भर उठता है। उसे इस बात का आभास है कि यदि बहू को कुछ हो गया तो अविनाश नहीं बचेगा। माँ को पता है कि अविनाश को बचाने की शक्ति केवल उसी में है। इसलिए वह प्राचीन संस्कारों के बाँध को तोडकर अपने बेटे के पास जाना चाहती है। अतुल माँ से कहता है कि इस स्थिति में उन्हें अपनी विजातीय बहू को भी अपनाना पड़ेगा, माँ कहती है -" जानती हूँ अतुल। इसलिए तो जा रही हूँ।" यह सुनकर अतुल और उमा प्रसन्न हो जाते हैं।

(iv) भारतवर्ष में अंतर्जातीय विवाह का चलन कोई नई बात नहीं है। सम्राट अकबर से लेकर इंदिरा गांधी तक, सुनील दत्त से लेकर शाहरुख खान 
तक देश में हज़ारों ऐसे उदाहरण देखे जा सकते हैं जहां विभिन्न समुदाय के लोग परस्पर विवाह के बंधन में बँधे हैं। भारत में विभिन्न धर्म और जाति के लोग रहते हैं। उन सभी के धार्मिक रीति-रिवाज़, रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार भिन्न हैं। यदि इन विभिन्न धर्म और जाति के लोगों के बीच वैवाहिक संबंध स्थापित हों तो उनकी सभ्यता और संस्कृति का मेलजोल बढ़ पाएगा जिससे देश की एकता और अखंडता मजबूत होगी।

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